( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )
सचको क्यों भूले भाई !
झूठ संगतको पाई || टेक ||
जो जाने मन - वात ,
उन्हीको संत कहा करते हैं ।
किसने यह बतलाया तुमको ?
नाहक क्यों बहते हैं ? ॥१ ॥
भूत - खेतको करे दूर जो ,
उसको ‘ साधू ' कहते ।
लडके - लडकी माँगे उसको ,
उससेही खुश रहते ॥२ ॥
आग लगी विषयनकी उसमें ,
क्या वह शांति देवे ? ।
वह तो खुद संसारी है ,
और तुमको लूटा लेवे ॥३ ॥
कला पाठ कर , नजरबंदसे ,
लोगनको ठगवावे ।
तुकड्यादास कहे , बिन सोचे ,
क्यों नर मरना पावे ? ॥४ ॥
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